स्वतंत्रता संग्राम के गुमनाम नायक

कुछ को अतिरंजित कर दिया है आपने स्वतंत्रता सेनानियों के नाम में,
किन्तु आज भी बहुत से इतिहास में गुमनामी में है जी रहे!
आओ आज करूँ वर्णन ऐसे गुमनाम सेनानियों का मैं,
जिन्होंने दे दी अपनी प्राणाहुति माँ भारती के चरणों में !!

200 सालों से निरंतर चल रहे अंग्रेजी शासन व शोषण दोनों से ही हमारे भारत देश को अथक प्रयासों के बाद आखिरकार 15 अगस्त 1947 में आज़ादी मिल ही गई। यह आज़ादी हमें भीख में नहीं मिली अपितु इसको जीता गया है, और इस जीत को अनेक स्वतंत्रता संग्रामियों ने अंग्रेजों से लड़कर व अपनी प्राणाहुति देकर प्राप्त किया है। अन्तर मात्र इतना है की इन में से कुछ का नाम आज इतिहास में सबसे पहले लिया जाता है और कुछ आज भी इतिहास के पृष्ठों में गुमनाम है!! चलिए आज उन्हीं गुमनामों पर थोड़ा प्रकाश डालते हैं।

भारतीय स्वाधीनता संग्राम का इतिहास क्रांतिकारियों के सैकड़ों साहसिक कारनामों से भरा पड़ा है। क्रांतिकारियों की सूचियों में से ही एक नाम है खुदीराम बोस का, जो मात्र 19 साल की उम्र में ही देश के लिए फांसी पर चढ़ गए। खुदीराम बोस को कुछ इतिहासकार देश के लिए फांसी पर चढ़ने वाला सबसे कम उम्र का क्रांतिकारी देशभक्त मानते हैं। उन में देश को आज़ाद कराने की ऐसी लगन लगी थी कि उन्होंने 9वीं कक्षा के बाद ही पढ़ाई छोड़ दी और स्वदेशी आंदोलन में कूद पड़े। उन्होंने मात्र 19 साल की उम्र में देश को अंग्रेजी हुकूमत से मुक्त कराने के लिए संघर्ष करते हुए सूली पर चढ़ गए। उन्होंने अपना जीवन उस उम्र में देश के लिए समर्पित कर दिया, जब एक युवा अपने करियर को लेकर असमंजस में रहता है। उनके बलिदान को 11अगस्त, 1908 को इतिहास में दर्ज करा गया।

स्वाधीनता संग्राम के इतिहास में स्त्रियाँ भी किसी से पीछे नहीं रही। मातंगिनी हाजरा और तारा रानी श्रीवास्तव भी ऐसे ही गुमनाम बन कर रह गई। मातंगिनी हाजरा ने भारत छोड़ो आंदोलन तथा असहयोग आंदोलन में भाग लेकर अपना अहम योगदान दिया था। एक जुलूस के दौरान वे भारत माता का झंडा लेकर आगे बढ़ रही थी, तभी उन पर गोली चला दी गई, अंत समय में भी उनके मुख से ‘वन्दे मातरम्’ शब्द निकलते रहें। तारा रानी श्रीवास्तव भी ऐसे ही बिहार में अपने पति के साथ जुलूस में थी। उसी दौरान उन पर गोली चलाई गई, लेकिन अपने घाव पर पट्टी बांध कर वह आगे बढ़ती रही। अंत में भारत माता के झंडे को लेकर उन्होंने अपने प्राण देश हित में समर्पित कर दिए।

ऐसे ही अनेक गुमनाम नायक हमारे देश में हुए जिनकी गाथाएं इतिहास के पन्नों में कहीं दब सी गई हैं।आज देश की भावी पीढ़ी को देश के संपूर्ण इतिहास को जानने की आवश्यकता है। हमारे युवा पीढ़ी को इन स्वतंत्रता सेनानियों के बारे में अधिक जानने का प्रयास करना होगा एवं सरकार को इन सभी गुमनाम वीरों और उनके जीवन की गाथाओं को पुस्तकों, लघु डॉक्यूमेंट्री बनाकर या संगोष्ठीयों की माध्यम से देश के लोगों के सामने लाने की आवश्यकता है।

आओ गुमनाम नायकों की वीरता के गुण गाए,
भावी पीढ़ी को उनकी वीरगाथा से परिचित कराएं।

काजल
काजल
लेखिका (इंटर्न)

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