
ईटों से बनी चारदीवारी को घर नहीं कहा जा सकता। ना ही घर उसे कहा जा सकता है , जिसमें लोग रहते हैं। घर तो वह होता है जिसमें अपने होते हैं, अपनों के एहसास होते हैं, अपनों की यादें होती है। घर वह है जो आपस में एक दूसरे का साथ देते हैं चाहे वह घड़ी मुश्किल की हो या सुख की। मुश्किल की घड़ी में परिवार को मुश्किल से निकालना, और सुख की घड़ी में उस सुख का आनंद लेना है घर कहलाता है।
घर वह शब्द है, जो अपनों के होने का एहसास दिलाता है। जिसमें एक सुखी परिवार होता है। रिश्तो में मिठास होती है। जो लोग माले की तरह जुड़ कर रहते हैं उनके एहसासों को समझते हैं, एक दूसरे की इज्जत करते है और आदर करते हैं, रिश्तो का सम्मान करते हैं उसे घर कहते हैं।
परिवार शब्द दो शब्दों से मिलकर बना होता है परी और वार जहां परी का मतलब होता है चारों तरफ वा परी (परिया) और वार का मतलब हमला अर्थात मुश्किल का सामना करने के लिए जो मिलकर चारों तरफ से हमला करते हैं उसे परिवार कहते हैं अर्थात जो साथ रहते हैं उन्हें परिवार कहते हैं।
घर वह नहीं होता है जहां कुछ लोग रहते हैं जैसे दादा, दादी, मां, बाबू भाई, बहन, चाचा, चाची आदि। जिन रिश्तो में प्यार ना हो, एक दूसरों का आदर ना हो, छोटे-बड़े का सम्मान ना हो, रिश्तो की अहमियत ना हो वह घर नहीं होता परिवार परिवार नहीं होता मकान कहलाता है।
परिवार तो वह होता है जहां अपने होते हैं अपनों का साथ होता है। छोटे बड़े का आदर होता है। जहां दादा दादी के प्यार के साथ उनका ज्ञान होता है।भाई भाभी की इज्जत छोटू में प्यार होता है। जहां सुबह की चाय का आनंद और शाम का खाना साथ होता है। जहां खुशियों का स्वागत साथ में वह दुख से लड़ाई मिलकर ही जाती है। वह घर परिवार होता है।
घर मकान में अंतर की कुछ चंद पंक्तियां :-
घ से घर,
म से मकान।
दोनों में अंतर,
बड़ा है महान।
इन पंक्तियों में घर और मकान के अंतर के बारे में बताया गया है। जहां पर बातें समान होते हुए भी समान नहीं होती है। जैसे:-
मकान भी ईंट का होता है, और घर भी ईंट का होता है। मकान में भी लोग होते हैं और घर में भी लोग होते हैं। मकान में भी अपने होते हैं वह घर में भी अपने होते हैं। लेकिन मकान से ही घर बनता है और घर से ही मकान बनता है। जिन रिश्तो में प्यार नहीं होता अपनों का साथ बना हुआ घर ना होकर मकान बन जाता है। और जिस परिवार में रिश्तो में अपनों का साथ होता है। बड़ों का आदर सम्मान होता है वह मकान घर बन जाता है।
हम सब की यही अरदास:-
रिश्तो को बचाना है
मकान को घर बनाना है

पलक जैन
मेरा नाम पलक जैन है । मैं लखनऊ में रहती हूं। मैंने अपनी हाईस्कूल व इंटरमीडिएट की शिक्षा सरस्वती विद्या मंदिर इंटर कॉलेज से पूर्ण की है। अब मैं (BBA) बैचलर ऑफ बिजनेस एडमिनिस्ट्रेशन की शिक्षा तीर्थंकर महावीर यूनिवर्सिटी मुरादाबाद से प्राप्त कर रही हूं। मुझे बुक पढ़ने, बैडमिंटन खेलने ,वा नाच में रुचि है।