
इस आलेख से हमलोग यह सोचने और जानने का प्रयास करेंगे कि कैसी दिनचर्या और रात्रिचर्या होनी चाहिए, जो हमलोगों के लिए सब तरीकों से प्रभावी हो । शारीरिक, मानसिक,और भावनाओं की स्थिति को संतुलित बनाकर रखे ; सभी लोग अपने कार्यो से संतुष्ट हों और जो लोग जंहा भी रहे खुश रहे और समाज में खुशियाँ बाटें। अपने जीवन के जीवनशैली को सुधारकर अच्छे मार्ग पर चलकर खुद की उन्नति और साथ-साथ समाज की भी उन्नति करते रहे। आज-कल इस आधुनिकता वाले युग में यह ज्यादा देखने को मिलता है कि लोगों के काम करने का समय दिन से बदलकर रात में भी होते जा रहा है ; जो दिन में काम करते है, वह बस दिन में समय को रूटीन में रखते है और जो लोग रात में काम करते है, वह रात के रूटीन के बारे में सोचते है।
मनुष्य कोई भी वर्ग- समुह का हो, चाहे विद्यार्थी, किसान, मजदुर, अफसर, राजनितिक नेता, शिक्षक ,व्यावसायिक हो , धार्मिक कार्य करने वाले हो या फिर किसी और समुह से हो; सभी को उन्नति करने के लिए इसपर ध्यान देने की जरुरत है। मनुष्य चाहे किसी भी अवस्था ( बालपन/ युवा/ प्रौढ़ा/ बृद्धा ) में हो, सभी को इसपर ध्यान देने की आवश्यकता है।समय सारे मनुष्यों के लिए दिन और रात को मिलाकर 24 घंटे के लिए है, भौगोलिक क्षेत्र के कारण दिन-रात के समय में उतार चढ़ाव भी होता है। भौगोलिक स्थिति भी बहुत लोगों की चर्या को बहुत प्रभावित करती रहती है।
हमलोग यह देख सकते है को लोगों की दिनचर्या-रात्रिचर्या निम्नलिखित कारणों से भी बदलती है:-
- आधुनिकता वाले इस युग में मानव और मानवीय समाज ज्यादा वैज्ञानिक पद्धति को अपनाकर प्रगति करने में लगा हुआ है। इसपर कोई प्रश्न नही उठा सकता क्योंकि अभी समय की भी यही मांग है; इससे व्यक्तिगत रूप में जो पाना चाहते है, वह उन्हें प्राप्त भी हो रही है।
- जगहों के अनुसार भी लोगों की जीवन शैली बदलती है जो लोग शहर में रहते है उनकी कार्य अलग होते है और कार्य करने की पद्धति अलग होती है, जबकि गांव में शहरों की तुलना में अलग काम होते है, उनके पद्धति अलग होती है।
- ऋतुओं के अनुसार भी इसमें परिवर्तन लाना जरुरी है, क्योंकि यह ऋतुएँ भी अहम भूमिका निभाती है कि हम क्या काम कर सकते है या नही, उसी के मुताबिक हम हम अपने दिनचर्या- रात्रिचर्या में परिवर्तन करते है।
- मनुष्य विभिन्न विचारों और भावनाओं के भी होते है, वह भी एक भूमिका निभाती है कि उनकी जीवनशैली कैसी है।
- जगहों के कारण जो सांस्कृतिक और धार्मिक परिवर्तन होता है, उसके अनुसार भी चीजे बदलती है।
साधारणतः कोई भी व्यक्ति अपने रूटीन में मुख्यतः खाना खाने ,काम करने, सोने ,और स्वास्थ्य को ठीक रखने के लिए जो जरुरी है, उस हिसाब से बनाता है। यह उनके प्रतिदिन-प्रतिरात का मुख्य काम होता है। प्रकृति में जो दिन और रात में परिवर्तन होता है; इसमें सुबह-शाम की भी बहुत ही महत्वपूर्ण भूमिका होती है। हमें प्रकृति हमेशा ही प्रत्यक्ष-अप्रत्यक्ष रूप से प्रभाव डालती है, अतः हमें अपनी दिनचर्या -रात्रिचर्या को उसी के अनुसार बनाना चाहिए। यह असामान्य और खास व्यक्ति के लिए अवश्य ही अलग हो सकती है।

प्रीति कुमारी
स्नातकोत्तर (इतिहास) की छात्रा।