आलेख का विषय है, 'मानवीय मदद पशुओं के लिए', आखिर इस मुद्दे पर इतना सोचने की जरुरत क्यों है, क्योंकि आजकल मनुष्य हर काम को जल्दी और आसानी से करने के लिए बहुत सारे विकल्प अपनाते हुए नजर आते है, जिसमें वे पशुओं का प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से प्रयोग में लाते हैं। हद की सीमा रेखा तो तब पार हो जाती है; जब हम पशुओं को मनोरंजन करने, पैसे कमाने और प्रदर्शनात्मक तरीकों में इस्तेमाल करते है। हमलोग यह भूल जाते है कि पशुओं में भी प्राण है। उन्हें भी आजाद रहने का पूरा हक है।
विश्व के सभी मानव जाति जब भी मानवता की बात होती है तो हम इसका मतलब यही समझते है कि हमें मानव समूह के लिए उदार और मददगार रहना चाहिए। मानवता और मानवीय कर्तव्य जो की सिर्फ मानव के लिए नही बल्कि पशुओं के लिये भी होना चाहिए। पशु भी मानव समाज का एक अभिन्न अंग है, जिसपर हम ध्यान न के बराबर देते है। हम खुद के लिए, परिवार के लिए, समाज के लिए बहुत तरीको से इनकी सहायता लेते है और अपने काम को आसान और पूर्ण करने में लगाते है। पशु भी हमें बहुत प्रकार से हमारी मदद करते है।
सबसे प्रमुख बात पर्यावरण और पारितंत्र को संतुलित बनाए रखने में अहम भूमिका निभाते है। अगर पर्यावरण साफ नही रहेगा, तो इसका प्रभाव सभी को भुगतना पड़ेगा; इसी प्रकार पारितंत्र का भी संतुलन में रहना बहुत ही आवश्यक है, तभी प्रकृति सुचारू रूप से कम कर पाएगी। प्रकृति में जो भी घटनाएं घटती है, उसका सीधा प्रभाव हम-सभी लोग पर पड़ता है। दुधारू पशुओं से हमे अपने खाने-पीने के लिए दूध की प्राप्ति होती है; जिसका प्रयोग हम बहुत प्रकार के व्यंजन बनाने में करते है। दूध और दूध से बनने बाले सामग्री तो पौष्टिक आहार में आता है, यह हमारे खान-पान का ऐसा अंग है कि इसके बिना मनो हमारा खाना अधूरा ही रहता है।
पशुओं में प्राण का होना इस बात का प्रमाण है कि उसके अंदर भी आत्मा है। आत्मा का होने मात्र से यह साबित होता है कि उनके अंदर भी जीवन है। पशुओं के लिए भी दया भाव होना अत्यंत ही आवश्यक है। लेकिन बात सिर्फ इतनी है कि वे बोल नही सकते, उनमे विवेक नही है; लेकिन मानव में तो विवेक और वुद्धि है, तो वे क्यों भूल जाते है? मानव जाति को इसपर विचार करना चाहिए और इसपर काम भी करना चाहिए।
पालतु पशु और जंगली जानवरों में भी मानव का सोच अलग अलग है, यह उनके व्यवहारों में भी झलकता है। इसका एक कारण यह है कि वे पशुओं को या तो अपने शौक पूरा करने के लिए पालते है या फिर उनकी सहायता लेने के लिए पालते है। यह उनकी निजी स्वार्थ है, लेकिन जंगली जानवरों को पालने में न ही उनकी कोई रूचि है और शायद न हो वे मानव समाज के लिए मददगार साबित होते है। मानवता तो हमें यही सीखाती है कि हमें किसी से कोई फायदा हो या न हो, हमे अपने मन में सभी के प्रति उदारता की भावना रखनी चाहिए।
सरकार के द्वारा उठाये गये कदम जंगली जानवरों को बचाने और संरक्षण प्रदान करने में बहुत ही असरदार साबित हो रही है। बहुत सारे वन्य जीव अभ्यारण्य और राष्ट्रीय उद्यान के द्वारा उनको सरंक्षण मिल रही है। अभी भी बहुत सारे जंगलो को काटा जा रहा है, अपने बहुत सारे कायों को पूरा करने के लिए, इसपर रोक लगाने की आवश्यकता है।
पशुओं को अपने फायदे के लिए, मनोरंजन के लिए, पैसे कमाने के लिए इस्तेमाल करना ; यह सब किस हद तक सही है, यह अवश्य ही सोचने का विषय है। हमे पशुओं से वैसे ही काम करवाने चाहिए जो उनके लिए सुविधाजनक है और उनका पूरा ख्याल रखते हुए करना चाहिए। खासकर यह बड़े-बड़े देशों में पैसा कमाने के लिए किया जा रहा है, इसपर रोक लगाना अत्यंत ही आवश्यक है।
सभी धर्मों के धार्मिक ग्रंथों में अहिंसा न करने की सलाह देती है, तो इसका तात्पर्य बस मनुष्यों की ही हिंसा न करने के लिए नही है, यह पशुओं के लिए भी है। हिंसा न करने का तात्पर्य जिस भी जीव में प्राण है, उनकी हत्या नही करने से है, इसपर विशेष धयान देने की बात है। हमारी धर्म भी तो यही संदेश दे रही है कि पशुओं के लिए भी दिल में प्रेम रखना आवश्यक है, नही तो धार्मिक दंड पशुओं को नुकसान पहुचाने से भी मिलेंगे।
पशुओं को संरक्षण देना मानवीय मदद ही नही, मानवीय कर्तव्य की श्रेणी में होना चाहिए और इसका मानवों को सहृदय स्वीकार भी करनी चाहिए। पशु जाति भले ही मानव जाति पर आश्रित नही हो, मगर मानव जाति बहुत सारे कामो को पूरा करने में पशु जाती पर निर्भर करता है; यह बात मानवो को कभी नही भूलना चाहिए।

प्रीति कुमारी
स्नातकोत्तर (इतिहास) की छात्रा।
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