आलेख का विषय है 'मन को स्थिर रखना'। इसके जरिए हमलोग इस बात पर विचार करेंगें कि मनुष्यों को अपने मन को नियंत्रण में रखना अत्यन्त ही आवश्यक है। जिंदगी में अगर हर परिस्थिति में साहस और धैर्य के साथ आगे बढ़ना है तो मन पर खुद का नियंत्रण होना जरूरी हो जाता है। 'मन' बहुत सूक्ष्म होती है, जो कि चंचल है और मस्तिष्क और भावनाओं को बहुत ही प्रभावित करती है; लेकिन हम बहुत सारे माध्यमों का प्रयोग करके इसको नियंत्रण में रख सकते है।
‘मन’ अंतःकरण का एक अंग है, जो संकल्प-विकल्प करने का काम करती है। इसका स्वरूप त्रिगुणात्मक होता है, जो तामसिक, राजसिक और सात्विक गुणों वाली होती है। जिस समय व्यक्ति के अंदर जो गुणों ज्यादा हावी होती है, मन उसी तरीकों से काम करती है। अगर हमारे अंदर तामसिक गुण ज्यादा है, तो यह अवश्य ही हमारे मन को तामसिक कार्यों को करने के लिए प्रेरित करेंगी; अगर राजसिक ज्यादा है, तो राजसिक और अगर सात्विक ज्यादा है, तो सात्विक कार्यों को करने की इच्छा होगी।
- अगर हमारा मन सात्विक गुणों वाला होता है, जो कि बहुत ही प्रकाशशील अवस्था मे होता है तो हमारा मन सत्कर्म में लगेगा। हमारे मन में उदारता और दयालुता की भावना आती है।
- जब मन का गुण राजसिक होता है, जो कि गतिशील अवस्था में होती है, तो हमलोग शारीरिक कामों को अच्छे से करेंगें, हमारा शरीर बहुत ही सक्रीय हो जाता है।
- तामसिक गुण में मन के होने से, जो कि स्थैर्यशील अवस्था वाला होता है तो हमें हमेशा ही तामसिक काम को करने का मन करेगा। हमारे अंदर आलस्य और उदासीनता आएगी।
धर्मशास्त्रों में लिखी हुई बातें हो या विद्वानों के द्वारा बोली जाने वाली बातें हो; सभी मानव जाति को सात्विक कार्यों को करने के लिए प्रेरित करती है। हमें अपने जीवन में सक्रिय रहने की जरुरत तो पड़ती ही है, ताकि हम शारीरिक कार्यों को कर सके, लेकिन हमें हमेशा ही यह प्रयास करना चाहिए कि हमलोग तामसिक कार्य नहीं करे, यह हमें जीवन में प्रगति करने में बाधा डालती है।
मनुष्य चाहे कोई भी पेशा का हो, अमीर हो या गरीब हो, उच्च श्रेणी का हो या निम्न श्रेणी का हो, पुरुष हो या स्त्री हो, सभी को मन को स्थिर और नियंत्रित रखना अत्यन्त ही आवश्यक है। इसी में स्वयं का और समाज का प्रगति संभव है। मन को स्थिर रखने के लिए कुछ बातों पर विशेष ध्यान रखने की जरुरत है, उसमें हमारा खान-पान, रहन-सहन आता है। हमारी जीवन-शैली भी एक अहम भूमिका निभाती है। अतः इनसब चीजों पर विशेष ध्यान देने की जरुरत है।
मनुष्य का दिन-रात कैसा भी बीते, मन में सकारात्मक और नकारात्मक दोनों विचार आते ही है, अब हमारे मन पर यह निर्भर करता है कि वह किस विचार को अपनाता है। मनुष्यों को अपने बुद्धि का प्रयोग कर सकारात्मक विचार को अपनाना चाहिए और सत्कर्म करना चाहिए। हमारा मन प्रसन्न हो या उदास हो, उत्साहित हो या हतोत्साहित हो, हमें हमेशा ही मन को संयमित रखते हुए विचारों पर निर्णय लेना चाहिए। यही हमें सकारत्मक ऊर्जा के साथ आगे बढाती है। ईश्वर के प्रति प्रेमभाव रखने से भी हमारा मन शांत और एकाग्र रहता है, जो की हमारी चंचलता और उद्विग्नता को कम करती है। ईश्वर हमेशा ही मानव जाति के विकास और कल्याण में सही मार्गदर्शन करते है और अप्रत्यक्ष रूप से मदद भी करते है।
अतः इसपर विचार करने से यही निष्कर्ष निकलता है कि हमें हमेशा ही मन को स्थिर रखना चाहिए। इसी से हमारा स्वयं का विकास निहीत है, जब स्वयं का विकास होगा तभी हम अपने परिवार का विकास कर पाएंगे, परिवार विकसित करेगा तो हमारा समाज भी आगे बढ़ेगा। इसी क्रम में हमारे राज्य, देश और विश्वभर के मानव जाति का कल्याण संभव है। हमलोग अभी नया भारत के निर्माण में लगे हुए है, अतः इस बात पर ध्यान देने की जरुरत है।

प्रीति कुमारी
स्नातकोत्तर (इतिहास) की छात्रा।