मनुष्यों को योगदर्शन समझने की आवश्यकता

इस आलेख में हमलोग यह जानने का प्रयास करेंगे कि जीवन को सही उद्देश्य के साथ जीने के लिए योगदर्शन को समझना कितना लाभदायक साबित हो सकता है। मानव जाति को अपने जीवन में जिस-जिस चीज की उम्मीदें है; वह हमें दैवीय शक्ति से जुड़ने पर आसानी से प्राप्त होता है, उसकी जानकारी हमें ‘योगदर्शन’ से मिलती है। यह हमारी ऊर्जा को संगरक्षित रखने में मदद करती है। यह हमारी स्वास्थ्य को ठीक रखने के लिए मार्ग प्रशस्त करती है। हमारी मनोभाव को खुश रखती है और मन में सकारात्मक विचार आते है; जो हमें धैर्य और साहस के साथ जिंदगी जीने की प्रेरणा देती है। इस प्रकार हमलोग जीवन को सार्थक बनाने में सफल होते है। मनुष्य जब यह महसूस करता है कि वह अपनी जिंदगी को सही दिशा में लेकर चल रहा है तो उसे खुशी का आभास होता है; वह खुद को सफल व्यक्ति पाता है और अपना सारा कार्य समाज के हित में करता है।

पृथ्वी भूभाग पर जितने भी मनुष्य प्राणी है, वह सभी इस बात को स्वीकार करते है कि हमलोग बस शरीर मात्र नही है। हम लोग के अंदर भी उस ऊर्जा की विद्यमता है , जो इस पुरे संसार का रचना करने वाला है। लोग उसे भगवान, खुदा, अल्लाह, वाहे गुरु तथा अनेक अन्य नामों से जानता और मानता है। यह तो सभी लोगो के द्वारा माना जाता है खुद को उस ऊर्जा से जोड़कर रखना, जो दिव्य और अलौकिक है वह हमे हर वक्त सही मार्ग दिखाता है और हमें हर समय सकारात्मक ऊर्जा प्रदान करने वाला है।

‘योगदर्शन’ एक पुस्तक है, इसके रचनाकार और लेखक ‘महर्षि पतंजलि’ है। इतिहासकारों का ऐसा मानना है कि इसे 200 ई. पु. अर्थात लगभग 2000 वर्ष पहले लिखा गया है; हालाँकि कुछ विद्वानों का मत यह भी है कि इसे 5000 वर्ष पहले ही लिखा जा चुका था। इन्होंने बहुत ही वैज्ञानिक पद्धति से इस पुस्तक को लिखा है। उन्होंने इस दर्शन शास्त्र को सभी व्यक्तियों के लिए लिखा है, इसमें न ही धर्म, जाति, संप्रदाय, लिंग, स्थान, मनुष्यों की अवस्था ( बालपन / युवा / प्रौढ़ा / वृद्धा ) के आधार पर भेदभाव किया है। इस दर्शनशास्त्र को जीवन में व्यावहारिक तौर पर उतारना सरल और सहज बनाया गया है।

“योगदर्शन” दो शब्द ‘योग’ और ‘दर्शन’ शब्द मिलकर बना है। ‘योग’ का अर्थ हमारी ऊर्जा अर्थात आत्मा का दिव्य ऊर्जा अर्थात परमात्मा के साथ मिलन या जुड़ाव। ‘दर्शन’ का अर्थ हुआ जिसके द्वारा देखा जाए या उस दिव्य ऊर्जा से मिलने की विधि जाना जाए। इस पुस्तक को उन्होंने चार भागों में बाटा है, जो क्रमशः समाधि, साधन, विभूति और कैवल्य पाद कहलाता है। इसमें उन्होंने 195 योगसूत्रों की मोतियों को बहुत ही खुबसूरती से पिरोये है। इसमें उन्होंने हमें ईश्वर के स्वरूप को बताया है और उस ईश्वर से जुड़ने का मार्ग भी दिखाया है।

यह दर्शन शास्त्र हमें शारीरिक स्वास्थ्य को अच्छा रखने के लिए आसन और प्राणायाम करने की सलाह देता है, जो मानवीय शरीर को सम्पूर्ण रूप से स्वस्थ रखने में सहायता प्रदान करती है। आसन जिसमें शरीर को विभिन्न स्थिति में कुछ समय के लिए रखते है, जो शारीरिक अंगों को व्यवस्थित करती है और मजबूत बनाती है। यह शरीर को आरोग्य रखने का काम भी करती है। प्राणायाम जिसको विभिन्न आसनों के मदद से श्वास प्रक्रिया के द्वारा पूरा किया जाता है। यह शरीर को अंदर से साफ करती है और हमें रोगों से मुक्त भी रखती है। स्वस्थ रहकर की मानव अपने सारे काम को बढ़िया तरीकों से कर सकता है।

यह पुस्तक हमें मन और चित्त को एकाग्र करने के लिए प्रेरित करती है, जिससे हमारी मन और चित्त जो की विचारों का संग्रह केंद्र है वह स्थिर रहती है। इससे हमारे मन को सकारात्मक ऊर्जा की अनुभूति होती है और मन में सुविचार उत्पन्न होते है। इस प्रकार मन और मस्तिष्क के बीच एक बढ़िया संतुलन स्थापित होती है, जो मनुष्यों को हर परिश्थिति में अच्छे काम करने के लिए तैयार करती है। जब मन और चित्त स्थिर रहेगी तो अवश्य ही मन प्रसन्न रहेगा। एक खुश व्यक्ति ही दूसरे व्यक्ति को खुश कर सकता है। इस प्रकार हमारे आसपास के पर्यावरण में खुशियों का माहौल होगा; सभी लोग प्रसन्नता के साथ अपने जीवन को जियेंगें और सार्थक बनाएंगे।

यह ग्रन्थ मनुष्यों को जीवन में सफलता प्राप्त करने के लिए भी उपाय बताए है । हमें जिस चीज में भी सफलता प्राप्त करनी है, उसमे हमें पूरी श्रद्धा के साथ बिना किसी रूकावट के लंबे समय तक प्रयास करने के लिए प्रेरित करती है। हमारा शरीर और मन-मस्तिष्क जब स्थिर रहता है तब हमें आतंरिक खुशी की अनुभूति होती है। इस मनोस्थिति से मानव सारे कार्यो में अपना पूरा योगदान देता है और सफलता भी पाता है। अगर सफलता नहीं भी मिलती है तो वह अपने मन को साधारण स्थिति में रखते हुए अपने दूसरे कार्यो को पूर्ण करने में लग जाता है।

समाज मानव जाति के समुह से बनता है। जब योगदर्शन को मानने और अनुसरण करने वाले लोग रहेंगे तो समाज की स्थिति बहुत अच्छी बनी रहेगी। सभी लोग जिम्मेवार बनेंगे और एक-दूसरे के लिए मददगार बनेंगें क्योंकि यह हमें अहिंसा, सत्य, अस्तेय, ब्रह्मचर्य व अपरिग्रह का पालन करने का निर्देश देती है; इसका पालन करने से मानव जाति सदैव ही सारा कार्य सामाजिक हित के लिए ही करता है। जब हमारा समाज खुशहाल भरा होगा तो अवश्य है सभी की प्रगति संभव है; सबके साथ से सबका विकास होगा।

इस प्रकार हम इस आलेख से यह जानने और समझने का प्रयास करते है कि मनुष्यों को योगदर्शन को समझने की आवश्यकता है, यह उनके खुद के लिए, परिवार के लिए, समाज के लिए, देश के लिए और मुख्यतः सारे मानव जाति के लिए बहुत ही जरुरी है। यह हमें खुद से जोड़े रखता है, पूरी जिंदगी को व्यवस्थित तरीके से जीने और फिर दिव्य ऊर्जा में मिल जाने की प्रेरणा देता है। अतः लोगो को ‘योगदर्शन’ को पढ़कर समझना चाहिए और जीवन में उतारना चाहिए।

स्रोत: महर्षि पतंजलि द्वारा लिखित योगदर्शन

प्रीति कुमारी
लेखिका (इंटर्न) at नया.भारत | + posts

स्नातकोत्तर (इतिहास) की छात्रा।

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